Can someone say that my nature is to talk insensitively – Hindi?

by Chaitanya CharanFebruary 9, 2017

Anwser Podcast

लिप्यंतरण तथा संपादन – अम्बुज गुप्ता तथा केशवगोपाल दास

प्रश्न- यदि किसी व्यक्ति का स्वभाव है असंवेदनशीलता से बात करना, तो उसके बारे में हम क्या कर सकते हैं? क्या असंवेदनशील स्वभाव के लिए कोई दवाई होती है?

उत्तर (संक्षिप्त)-

·         हम सभी अपने-अपने स्वभाव से बंधे हुए हैं। किन्तु ऐसा भी नहीं है कि हम अपने-अपने स्वभावों में थोड़ा परिवर्तन भी न कर सकें और जस के तस बनें रहें।

·         वर्तमान स्तर पर हमारा जो भी स्वभाव है हम तपस्या के माध्यम से उसमें थोड़ा परिवर्तन लाने का प्रयास कर सकते हैं।

·         हमें इस बात का ध्यान देना चाहिए कि हम अपनी तुलना किसी अन्य से करने की बजाय स्वयं से करें और बदलने का प्रयास निरंतर करते रहें।

उत्तर (विस्तृत)- देखिए यहाँ पर दो चीजे हैं- पहला वो जो बदला जा सकता है और दूसरा जो बदला नहीं जा सकता। हालांकि ऐसी कुछ आदतें ऐसी हो सकती हैं जो बदली नहीं जा सकती हैं,पर उसका मतलब यह नहीं कि उन्हें बिल्कुल जस का तस ही रखना है। कुछ व्यक्तियों का साधारणतया बोलने का ढंग एक स्तर पर हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति कटु अथवा असंवेदनशीलता से बोलने के स्तर पर है तो सम्भव है कि वह पूर्णतया अपनी असंवेदनशीलता न छोड़ पाए। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह अपनी कटु वाणी को अथवा अपनी असंवेदनशीलता को जरा भी कम न कर सकता हो। हम सबकी प्रवृत्तियाँ अलग-अलग होती हैं और अपनी प्रवृत्ति को पूरी तरह से परिवर्तित करना बहुत कठिन होता है। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि प्रवृत्ति को पूरी तरह वैसे के वैसे ही रखना है। शास्त्रों के एक उदाहरण से हम इस बात को समझ सकते हैं।

महाभारत में पाण्डवों में भीम के बारे में बताया गया है कि वे बहुत खाते थे। उनका एक नाम है वृकोदर, अर्थात् बहुत खाने वाला। जब पाण्डव वनवास में थे तो उन्हें जो भी अन्न मिलता था उसके दो विभाग किए जाते थे। एक विभाग भीम को दिया जाता था और बाकि के भाग को पाँच भागों में बाँटा जाता था। चार पाण्डवों को और एक द्रोपदी अथवा कुन्ती का। इससे अंदाजा लगाईए कि भीम हर रोज कितना भोजन खाते थे। उनको भूख ही इतनी लगती थी, वे क्या कर सकते थे। साथ ही साथ वे उतना काम भी करते थे। भीम के बारे में यह बताया जाता है कि उन्हें उपवास करना बड़ा कठिन होता था। उनके लिए एक उपवास था जो हम भी करते हैं – पाण्डव निर्जल एकादशी। उनको कहा गया कि यदि आप साल में एक ही उपवास कर लोगे तो आप को सारे उपवासों का फल प्राप्त हो जाएगा। कहने का तात्पर्य है कि भीम के लिए उपवास करना कठिन था किन्तु फिर भी उन्हें एक उपवास करने की सलाह दी गई।

इसी प्रकार प्रकृति के अनुसार हमारा जो भी स्तर है, हम तपस्या करके अपने वर्तमान स्तर से थोड़ा नीचे आ सकते हैं। हमें दूसरों से अवास्तविक आशा नहीं रखनी चाहिए। अन्यों के लिए जो असंभव है वो ही उनको करने के लिए बोलना और यदि वे ऐसा नहीं कर सकते हों तो उनको दोष दें कि तुम अप्रमाणिक हो, यह ठीक नहीं। दो व्यक्तियों के संबंध में यदि एक व्यक्ति का एक प्रकार का स्वभाव है तो दूसरे व्यक्ति को उससे ऐसी अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए जो उस व्यक्ति के लिए असंभव हो। पर दूसरे व्यक्ति को भी ऐसा नहीं समझना चाहिए कि मेरा तो ऐसा ही स्वभाव है और मैं ऐसा ही रहूँगा। उसमे थोड़ा परिवर्तन जरूर किया जा सकता है। परिवर्तन की मात्रा अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग हो सकती है। हम सब जिस स्तर पर हैं उस स्तर पर हम अन्यों के प्रति असंवेदनशील हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, पाण्डवों में युधिष्ठर थे तो वास्तव में क्षत्रिय पर वे ब्राह्मण प्रवत्ति के क्षत्रिय थे और भीम क्षत्रिय प्रवृत्ति के क्षत्रिय थे। उनमें सदैव युद्ध करने के लिए बड़ा उत्साह होता था। फिर भी उन दोनों का स्वभाव अलग-अलग था। साथ ही साथ दोनो धर्मनिष्ठ थे। युद्धिष्ठिर अकसर शांत रहा करते थे किन्तु भीम को क्रोध आ जाता था। किन्तु भीम भी जहाँ शांत रहना जरूरी होता था तो शांत रहा करते थे। कभी-कभी जब बड़ा अन्याय होता था तो युद्धिष्ठिर भी क्रोधित हो जाते थे।

कहने का तात्पर्य यह है कि हम जिस स्तर पर वर्तमान में हैं उस स्तर पर रहते हुए हम स्वयं पर नियंत्रण करें और अधिक संयम करने का प्रयास करें। अपने-अपने स्वभाव के अनुसार मेरे लिए तपस्या तथा आपके लिए तपस्या का स्तर अलग-अलग हो सकता है। ऐसा नहीं है कि सब के लिए एक ही स्तर की तपस्या निश्चित है। ऐसा भी नहीं है कि क्योंकि सब के लिए तपस्या एक ही है, तो किसी को कोई तपस्या करनी ही नहीं। हरेक को अपने स्तर के अनुसार, जो जहाँ पर स्थित है वहीं से स्वयं को और अच्छा करना है।

Instead of comparing with others we should compare with ourselves and improve ourselves.

अन्यों से तुलना करके- “अरे वह तो हमसे इतना आगे है”- इससे लाभ नहीं होगा। “नहीं, मैं जहाँ पर हूँ वहीं से मुझे आगे बढ़ना है”, ऐसा भाव उत्तम है और सफलता देने वाला है।

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