If we don’t see others’ faults, how can we guide them to improve – Hindi?

by Chaitanya CharanFebruary 9, 2017

Anwser Podcast

लिप्यंतरण तथा संपादन: अम्बुज गुप्ता तथा केशवगोपाल दास

प्रश्न- यदि हम दोष नहीं देखें तो फिर गलत मार्ग पर जाने वाले को हम सही मार्ग पर कैसे लाएँगे?

उत्तर- यहाँ दो बातें हैं – एक है दोष बिल्कुल न देखना, दूसरा है केवल दोष ही देखना।

दोष देखने में रूची लेने का अर्थ है कि जब हम दोष देखते हैं तो हमारी सोच रहती है – “तुम गलती कर रहे थे और मैंने तुमको पकड़ लिया”। ऐसा करने से सामने वाले व्यक्ति को लगता है कि हम उनके शत्रु हैं। जब हम किसी में दोष देख रहे होते हैं तो उस व्यक्ति को यह आश्वासन देना जरूरी होता है कि हम उनके हित चिन्तक हैं। समस्या यह है कि हम कहते तो यह हैं कि मैं आपका हित चिन्तक हूँ, पर हमारी भावनाएँ कुछ और कहती हैं। लोग हमारे हृदय को नहीं देख सकते। इसलिए लोगों को यह आश्वासन देना जरूरी है कि हम उनके हित चिन्तक हैं।

सुधारने के लिए दोष देखना आवश्यक है, यह सत्य है। पर सिर्फ दोष ही देखेंगे, दोष देखने में रूचि लेंगे, तो दूसरे कभी भी सुधरेंगे नहीं। उदाहरण के तौर पर, यदि माता-पिता बच्चों के दोष देखते हैं तो वो उन्हें सुधार सकते हैं। ऐसा माता-पिता कुछ साल तक कर सकते हैं। किन्तु जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, स्वतन्त्र हो जाते हैं, वे गलत मार्ग पर जाने लगते हैं। वे ऐसा इसलिए नहीं करते कि उन्हें गलत मार्ग पर रूचि होती है, वे गलत मार्ग पर इसलिए जाते हैं कि वे यह अधिकार जता सकें कि मैं अपने माता-पिता के खिलाफ जा सकता हूँ। इसलिए यदि हम बहुत अधिक दोष देखते हैं तो परिणाम उल्टा भी हो सकता है।

इसलिए हमें चाहिए कि यदि हम दोष देखें तो सम्वेदनशीलता से देखें। ऐसा नहीं कि दोष नहीं देखना है और ऐसा भी नहीं कि केवल दोष ही देखना है। दोष देखकर उस व्यक्ति को आश्वासन देना है कि हम उसके हित चिन्तक है और उनमें जो दोषी पदार्थ है, और उनमें जो अच्छा है वह दोनो ही हमें बताना है। हमें उस व्यक्ति के दोष के बारे में बताना है किन्तु साथ ही साथ प्रोत्साहन भी देना है। होता क्या है कि हम दोष देखने में तो रूचि लेते हैं किन्तु हम प्रोत्साहन देना भूल जाते हैं। हम सिर्फ दोष देखते हैं, ज्ञान देखते हैं, तो वह व्यक्ति हताश हो जाता है और फिर वो सही मार्ग पर नहीं आता। हमें दोष देखने के साथ-साथ व्यक्ति को सही मार्ग पर आने के लिए प्रोत्साहित भी करना है। यदि हम ऐसा कर पाते हैं तो दोषों से उठकर सही स्तर पर आने में हम दूसरे व्यक्ति की मदद कर सकते हैं।

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