6. पहले रास्ता देखो, फिर चलो

by March 9, 2017

रास्ता भूलना अकसर हमारी हिम्मत तोड़ देता है| और उससे भी बुरा तब होता है जब हम यह आशा खो बैठते हैं कि आगे हमें कोई रास्ता नहीं मिलेगा| हतोत्साहित करने वाली परिस्थितियों में अकसर ऐसा होता है| अर्जुन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ (भगवद्गीता १.३०)|

यदि रास्ता भूलने के बाद भी हमें समझ नहीं आता कि हम खो गए हैं तो वह स्थिति और भी अधिक खतरनाक होती है| ऐसा अकसर बड़बड़ाते-लड़खड़ाते उन शराबियों के साथ होता है जो खुद को अपने कल्पना-जगत के शहंशाह मानते है| सांसारिक वस्तुओं के नशे में चूर तथा भौतिक सफलता के पीछे दौड़ते हुए हमारी स्थिति भी कुछ ऐसी ही हो जाती है| बिना सोचे-विचारे कार्य करने से हम कर्मबंधन तथा दुखों के चक्र में फंसते जाते हैं, और शीघ्र आश्चर्यजनक वस्तुएँ प्राप्त करने के सपने देखते हैं|

परन्तु ऐसे सपने बमुश्किल ही पूरे होते हैं| सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने के बाद हम पाते हैं कि सुख हमारी मुट्ठी से फिसलता जा रहा है| सुख की लालसा हमें और ऊँचे शिखरों पर जाने के लिए लालायित करती है और हम सदैव भयभीत रहते हैं कि कहीं कोई हमें हमारे वर्तमान शिखर से धक्का न दे दे| दूर से सफलता दिखने वाली परिस्थिति वस्तुतः विफलता सिद्ध होती है| इसे पहचान कर कुछ लोग जीवन से निराश हो जाते हैं| उन्हें समझ नहीं आता कि वे किसके लिए जीवित रहें|

गीता का ज्ञान हमें ऐसे दुखों से बचाता है और सच्चे सुख का रास्ता दिखाता है| हम सब आत्मा हैं| हमारा सच्चा सुख भगवान् श्रीकृष्ण के दिव्या प्रेम में निहित है| इस ज्ञान के माध्यम से हम भगवान् द्वारा प्रदान किये गए अपने स्वभाव, स्थिति तथा प्रतिभाओं द्वारा उनकी सेवा एवं उनका गुणगान कर सकते हैं| अर्जुन ने यही किया| यदि भौतिक दृष्टि से हम सफल हो जाते हैं तो श्रीकृष्ण को वह सफलता अर्पित करके हम अलौकिक सुख की अनुभूति कर सकते हैं| यह अनुभूति अहंकार-आधारित क्षणभंगुर सफलता से कहीं अधिक संतोषजनक होती है| और यदि हम सफल नहीं होते, फिर भी गीता हमें विश्वास दिलाती है कि भक्तिभाव से प्रयास करने के कारण हमें एक यशस्वी भविष्य प्राप्त होगा|

इसलिए, भौतिक दृष्टि से हमारे जीवन में क्या होगा यह महत्वपूर्ण नहीं है| हमें आश्वस्त रहना चाहिए कि हम कभी भक्तिमार्ग से भटकेंगे नहीं और अपनी सर्वोच्च मंजिल श्रीकृष्ण की ओर अग्रसर होते रहेंगे|

मेरे लिए यहाँ खड़े रह पाना संभव नहीं है| मुझे स्वयं अपनी विस्मृति हो रही है और मेरा मन चकरा रहा है| हे केशव, हे कृष्ण! मुझे तो यहाँ केवल अशुभ ही दिखाई दे रहा है|
भगवद्गीता १.३०

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