2. पैसा दुनिया चलाता है, और चलाते-चलाते चला जाता है

by March 9, 2017

कहा जाता है कि दुनिया पैसे वालों की होती है। जिसके पास पैसा है सब उसके पीछे चलते हैं और वही दुनिया को चलाता है। इसलिए अकसर हम उस ताकत को प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं जो पैसे के साथ आती है। जब हम अपने सिर पर पैसे के भूत को सवार कर लेते हैं तो उस समय पैसा हमारे जीवन की अहम जरूरत नहीं वरन् हमारी जिन्दगी की पहचान और आधार बन जाता है।

दो राय नहीं कि पैसा दुनिया को चलाता है, परन्तु चलाते-चलाते वह खुद चला जाता है। जब पैसे का दिखावा किया जाता है तो वह खर्च भी होता है। और पैसे के आधार पर स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने के प्रयास में हम अकसर ध्यान नहीं दे पाते कि किस प्रकार वह पैसा हमारी मुट्ठी से फिसल रहा है। हमें खरीदारी के “नशेड़ी” और कर्जदार बनने मे ज्यादा वक्त नहीं लगता।

भगवद्गीता (१६.१३-१५) उन भोगी लोगों की मानसिकता बताती है जो पैसे और उसके साथ आने वाली शक्ति को प्राप्त करने के लिए किसी भी सीमा तक अनैतिक तथा बर्बर बन जाते हैं। इतना करने पर भी चिन्ताएँ उनके अन्तर्मन को खोखला बनाती रहती हैं। गीता (१६.१६) ऐसे लोगों की चेतना का सटीक वर्णन करती है।

एक बार यदि हम पैसे के हाथों में कठपुतली बन जाते हैं तो हम देख नहीं पाते कि किस प्रकार वह पैसा धीरे-धीरे चला जा रहा है।

गीता का ज्ञान सिखाता है कि मूल रूप से हम सब चिन्मय आत्मा हैं। निःसंदेह पैसा हमारे अहंकार को सन्तुष्ट करता है, परन्तु हमारा जीवन इस क्षणभंगुर सुख एवं संतोष से कहीं अधिक गहन सुख एवं आत्मीय संतोष प्राप्त करने हेतु है। हमारे जीवन का लक्ष्य सर्वाकर्षक भगवान् श्रीकृष्ण की भक्ति एवं सेवा में अनन्त सुख प्राप्त करना है।

भक्ति रूपी सम्पत्ति को अर्जित करने के लिए हमें इस संसार की सम्पत्ति, पैसे अथवा उसकी शक्ति को त्यागने की आवश्यकता नहीं, अपितु हमें अपने जीवन में इन वस्तुओं का इस प्रकार प्रयोग करना है जिससे हम भगवान् श्रीकृष्ण एवं उनसे सम्बन्धित लोगों से प्रेम एवं उनकी सेवा कर सकें। इस प्रकार आध्यात्मिक दृष्टि से हमारा जीवन सुखी-समृद्ध हो जाता है। भक्ति की सम्पत्ति भी सिर चढ़कर बोलती है, परन्तु वह अहंकार को जन्म नहीं देती। वह परस्पर हार्दिक सौहार्द, स्नेह एवं सेवा को जन्म देती है। यह हमारे चरित्र को सुदृढ़ बनाती है, और आपसी सम्बन्धों में ऐसे गहन प्रेम एवं विश्वास को प्रेरित करती है जिसे इस संसार का पैसा कभी नहीं खरीद सकता।

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