In all spiritual affairs, one’s first duty is to control his mind and senses. Unless one controls his mind and senses, one cannot make any advancement in spiritual life.
Nectar of Instruction Preface
शुद्ध स्वरुप में अपने अंशी परमात्मा की ओर स्वतः एक आकर्षण रूचि विधमान रहती है, जिसको प्रेम कहते है |
जब वह संसार के साथ अपना सम्बन्ध भाव लेता है तो वह प्रेम दब जाता है और काम उत्पन्न होता है | जब तक काम रहता है तब तक प्रेम जागृत नहीं होता है |
CAPTCHA Code *
Δ
शुद्ध स्वरुप में अपने अंशी परमात्मा की ओर स्वतः
एक आकर्षण रूचि विधमान रहती है, जिसको प्रेम कहते है |
जब वह संसार के साथ अपना सम्बन्ध भाव लेता है
तो वह प्रेम दब जाता है और काम उत्पन्न होता है |
जब तक काम रहता है तब तक प्रेम जागृत नहीं होता है |