१०. मूर्खताभरे कार्य करने से अच्छा अपनी मूर्खता स्वीकार करना है

by March 9, 2017

कई बार जीवन की जटिलताओं में उलझने पर हम दूसरों की सहायता लेने से हिचकिचाते हैं| भय लगता है कि कहीं लोग हमें मूर्ख न कहें| परन्तु उस उलझनभरी भयभीत अवस्था में हम अकसर मूर्खताभरे कार्य कर बैठते हैं| हमारी अज्ञानता हमें गलत चुनाव करने पर बाध्य करती है|

उलझनों में किस प्रकार साहस का चुनाव किया जाये, यह भगवद्गीता के आरम्भ में दिखाया गया है| अर्जुन के सामने एक अत्यन्त हृदय-विदारक उलझन थी| उसे अपने उन सम्बन्धियों के साथ युद्ध करना था जो अधर्मी बन चुके थे| अधिकांश योद्धा यही कहते हैं – “योद्धा का कर्तव्य युद्ध करना है|” कोई संशय नहीं कि अर्जुन एक पक्के योद्धा थे, परन्तु वे एक सामान्य योद्धा से ऊपर थे| उनका हृदय कोमल था, विचार संवेदनशील तथा बुद्धि शास्त्रों द्वारा निर्देशित| वे भली-भांति जानते थे कि अकसर जीवन की उलझनें व्यक्ति को दोराहे पर ला खड़ा करती हैं| क्या सही है और क्या गलत, वे निर्णय नहीं कर पाते| अंततः, धर्म क्या है यह जानने के लिए वे श्रीकृष्ण की शरण लेते हैं| (२.७)

दोनों सेनाओं के लाखों सैनिक आमने-सामने खड़े थे| अर्जुन जैसे सुविख्यात हीरो सार्वजनिक रूप से किसी की शरण लेना लज्जाजनक लगेगा, परन्तु अर्जुन ने वही किया जो अत्यावश्यक था| उन्होंने अपनी ख्याति को महत्व नहीं दिया| युद्ध करने और न करने का निर्णय जीवन और मृत्यु का निर्णय था| यह निर्णय न केवल उन्हें अपितु उनके अनेक सम्बन्धियों तथा वहाँ जुटे लाखों सैनिकों को प्रभावित करने वाला था|
हो सकता है अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण कि शरण लेना उनकी मूर्खता को दर्शाये, परन्तु इस कार्य ने उन्हें परम बुद्धिमान और ज्ञानी बना दिया| श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में उन्होंने सही निर्णय लिया और धर्म की स्थापना में मुख्य भूमिका निभायी| इतना ही नहीं, अर्जुन द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर से ऐसे कालातीत ज्ञान ने जन्म लिया जो अनंत समय तक मानव समाज को दिशा दिखता रहेगा|

जब जीवन कि जटिलताएं हमें उलझा दें तो हम भी अर्जुन के समान अपनी प्रतिष्ठा के विचार को निःसंकोच एक किनारे रख सकते हैं| श्रीकृष्ण की शिक्षाओं तथा उनके प्रतिनिधियों का अनुगमन करके हम भी संरक्षण तथा दिव्य ज्ञान की शक्ति प्राप्त कर सकते हैं|

मानसिक दुर्बलता के कारण मैं भ्रमित हो गया हूँ और मेरे मन का संतुलन नष्ट हो गया है| कृपया निश्चित रूप से बताएँ कि इस स्थिति में मेरे लिए क्या श्रेष्ठ है| मैं आपका शिष्य हूँ और आपकी शरण में आया हूँ| कृपया मुझे उपदेश दें|
(भगवद्गीता २.७)

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