१. परिवर्तन का सामना करें, उससे प्रभावित न हों

by March 9, 2017

हमारे चारों ओर फैला संसार निरन्तर बदल रहा है। अकसर इस बदलाव को न तो रोका जा सकता है, न नियन्त्रित किया जा सकता है और न ही इसकी भविष्यवाणी की जा सकती है। भगवद्गीता (२.१६) बताती है कि यदि हम इस बदलाव का सामना करना चाहते हैं तो हमें किसी ऐसी वस्तु को केन्द्र में रखना होगा जो कभी नहीं बदलती। वह है हमारा आध्यात्मिक स्वभाव और श्रीकृष्ण के साथ हमारा आध्यात्मिक सम्बन्ध।

इसे केन्द्र में रखने से हमें एक ऐसा आत्मविश्वास प्राप्त होता है जिससे संसार में होने वाला कोई भी बदलाव –
1. हमारी अविनाशी आत्मा को हानि नहीं पहुँचा सकता है
2. न ही श्रीकृष्ण को हमें प्रेम करने से रोक सकता है, और
3. न हमें श्रीकृष्ण का स्मरण तथा उनके प्रेमभरे आश्रय का अनुभव करने से रोक सकता है।

जीवन की इन अपरिवर्तनीय ठोस सच्चाई को जानकर हम समझने लगते हैं कि हमारे जीवन में होने वाले परिर्वतनों से यह संसार समाप्त नहीं हो जायेगा। जब हम गम्भीरतापूर्वक प्रार्थना के भाव में भगवान् की भक्ति करते हैं, हम अपने जीवन में स्पष्ट श्रीकृष्ण की उपस्थिति, उनका आश्रय तथा उनके प्रेम का अनुभव करते हैं। हमें गहन साक्षात्कार होता है कि वास्तविक सच्चाई अपरिवर्तनशील है। यह जानकर कि इस संसार में होने वाले परिवर्तन हमारे मूल स्वरूप को प्रभावित नहीं कर सकते, हम उनसे विचलित नहीं होते। हम अपने भीतर इतने दृढ़ हो जाते हैं कि बाहर उठने वाले तूफान हमें हिला नहीं पाते। साथ ही हम जान जाते हैं कि बाह्य परिवर्तन इस संसार में हमारे कार्यों को प्रभावित करते हैं और इस प्रकार हम न तो उन बदलावों को नकारते हैं और न ही उनकी उपेक्षा करते हैं। हम बुद्धिमत्ता द्वारा उनका सामना करते है।

इस प्रकार गीता का ज्ञान हमें सिखाता है कि किस प्रकार विचलित हुए बिना शान्ति एवं बुद्धिमत्ता द्वारा परिवर्तनों का सामना किया जाये।

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1 Comments
  • प्रेम कृष्ण दास
    March 31, 2017 at 6:56 am

    आपका धन्यवाद प्रभु जी…

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