Were kshatriyas allowed to eat meat in Vedic culture?

by Chaitanya CharanApril 21, 2021

Answer Podcast

Answer Podcast Hindi

 

Transcription by: Srimati Lata Goel Mataji (Kaithal)

प्रश्न: क्या वैदिक संस्कृति में क्षत्रियों को मांसाहार की अनुमति थी?

उत्तर:<./b> वैदिक संस्कृति एकदम व्यवहारिक थी और यह जानती थी कि अलग-अलग लोग अलग-अलग गुणों में होते हैं। इसीलिए उनकी परिस्थिति, गुण, वर्ग के अनुसार अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग सिद्धांत थे।

सामान्यतया वैदिक संस्कृति शाकाहारी थी, लेकिन विशेष परिस्थितियों में क्षत्रियों को मांसाहार की अनुमति थी। ऐसा इसलिए क्योंकि क्षत्रियों को अक्सर ऐसी परिस्थिति में रहना पड़ता है जहां शाकाहारी भोजन उपलब्ध नहीं होता। हम सम्भवतः यह सोचते होंगे कि क्षत्रिय तो अपने आलीशान महलों में ऐश्वर्य से रहते हैं। लेकिन क्षत्रिय जीवन का यह सिर्फ एक पहलू है।

क्षत्रियों को युद्ध करना पड़ता है, खूंखार पशुओं से लड़ना पड़ता है, डकैतों का सामना करना पड़ता है और इसके लिए उन्हें वन में जाना पड़ता है। तो इन सब कार्यों के लिए जब उन्हें वन में या वन से होकर जाना पड़ता है तो अक्सर पौष्टिक शाकाहारी भोजन उपलब्ध नहीं होता। वन में खाने लायक फल फूल अवश्य मिल सकते हैं, लेकिन हम मनुष्य यह आसानी से नहीं समझ सकते हैं कि कौन से फल खाने योग्य हैं और कौन से नहीं।

योगी जब वानप्रस्थ लेकर वन में जाते हैं तो वे कंदमूल फल लेकर अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं, क्योंकि वह शारीरिक परिश्रम वाला कोई कार्य नहीं करते। लेकिन क्षत्रियों को बड़ी-बड़ी तलवारें और गदायें उठाकर लड़ना पड़ता है और तीर भी मारने पड़ते हैं। तीर को कमान में लगाने के लिए भुजाओं में काफी ताकत होनी चाहिए। यह अनिवार्य नहीं कि ऐसी शक्ति के लिए मांस खाना आवश्यक है। शाकाहारी भोजन भी शक्ति देने वाला होता है पर जब जंगल से होकर जा रहे हों तब ऐसे भोजन का भण्डार ढूंढना कठिन है। जब शत्रुओं का पीछा कर रहे हों तो ऐसा भोजन लेकर घूमना सम्भव नहीं है। ऐसी परिस्थिति में क्षत्रियों को मांसाहार की अनुमति है।

यह समझना आवश्यक है कि वैदिक सभ्यता में मांसाहार कोई संस्तुति नहीं है, यह मात्र विशेष परिस्थितियों में एक प्रकार की छूट है। इसे आपात धर्म (emergency religion) कहते हैं। सामान्य जनता को ऐसी आपात स्थितियों का सामना शायद ही कभी करना पड़ता हो किन्तु क्षत्रियों के जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ अक्सर आती रहती हैं।

End of transcription.

About The Author
Chaitanya Charan
0 Comments

Leave a Response

*