Till what point should we tolerate?

by Chaitanya CharanJune 22, 2022

Answer Podcast

Transription in Hindi
प्रश्न: सहनशीलता की हद कैसे तय करें?

उत्तर: जो गीता अर्जुन को सहन करने की शिक्षा देती है (गीता २.१४ – ताम् तितिक्षस्व भारत), वही गीता अर्जुन को युद्ध के लिए भी प्रेरित करती है (गीता ११.३३ – तस्मात त्वम उत्तिष्ठ यशो लभस्व)। श्रीकृष्ण ने कौरवों के अत्याचारों को सहने के लिए अर्जुन को गीता नहीं सुनाई। सहिष्णुता एक गुण है, किन्तु सर्वोच्च गुण नहीं है। सर्वोच्च गुण है धर्म का पालन करना और धर्म की परिणति अंततः भक्ति में होती है। भक्ति का अभ्यास करने के लिए, सहनशीलता का गुण होना आवश्यक है, किन्तु यदि परिस्थितियाँ हमारी भक्ति में बाधा बनें, तो ऐसी परिस्थितियों को सहन करने का अर्थ होगा अपनी सेवा को बंद करना। हमें यह समझना आवश्यक है कि सहिष्णुता का उद्देश्य है सेवा। सहिष्णुता का अर्थ है छोटी-छोटी बातों को छोटा ही रखना ताकि हम अपने मुख्य उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित कर सकें। यदि सहिष्णुता के कारण मुख्य उद्देश्य की प्राप्ति में बाधा पड़ने लगे तो यह सहिष्णुता नहीं नपुंसकता कही जाएगी। और भगवद्गीता नपुंसकता की सिफारिश नहीं करती।

उदाहरणार्थ, श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर (श्रील प्रभुपाद के आध्यात्मिक गुरु) कहा करते थे कि यदि हम कृष्ण-कथा के लिए लोगों को आमंत्रित करते हैं और कोई नहीं आए, तो हमें दीवारों को कथा सुनानी चाहिए। आरम्भ में जब श्रील प्रभुपाद भारत में कृष्णभक्ति का प्रसार करने का प्रयास कर रहे थे, तब लोगों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई, किन्तु श्रील प्रभुपाद ने दीवारों को कथा नहीं सुनाई। उन्होंने अथक प्रयास किए। वे अमरिका आए और अमरिका में ऐसे लोगों से सम्पर्क किया जो आध्यात्म के प्रति गंभीर थे। वे ऐसे लोगों को भारत लाए और अंततः भारत में लोगों ने प्रभुपाद को गंभीरता से लिया। प्रभुपाद कह सकते थे, “अरे, मैं चालीस साल से भक्ति के प्रचार का प्रयास कर रहा हूँ, कोई मुझे गंभीरता से नहीं ले रहा है, मुझे सहन करना चाहिए”। उन्होंने ऐसा नहीं कहा। उनका उद्देश्य श्रीकृष्ण की सेवा करना था और इसके लिए उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उदाहरणार्थ, आरम्भिक दिनों में जब वे कक्षाऐं प्रस्तुत कर रहे थे, तो लोग कभी-कभी अजीब व्यवहार करते थे। अचानक ही प्रश्न पूछ बैठते। नशे की हालत में उल्टा-सीधा बोलने लगते। किन्तु श्रील प्रभुपाद ने वह सब सहन किया। जब प्रभुपाद, बटलर, पैनसिल्वेनिया में गोपाल और सैली अग्रवाल के साथ रह रहे थे, उस समय उनका भोजन उसी फ्रिज में रखा था, जहाँ अग्रवाल दम्पत्ति माँस रखते थे। अग्रवाल दम्पत्ति समझते थे कि ऐसा करना उचित नहीं है, किन्तु उनके पास कोई अन्य फ्रिज नहीं था। इसके लिए उन्होंने श्रील प्रभुपाद से क्षमा भी माँगी। श्रील प्रभुपाद ने स्थिति को समझा और हँसते-हँसते इसे सहन किया।

अतः सहिष्णुता का अर्थ है कि हम छोटी-छोटी बातों के कारण अपने मुख्य उद्देश्य अर्थात श्रीकृष्ण की सेवा से विचलित न हों। इसके विपरीत यदि सहिष्णुता हमारे मुख्य उद्देश्य के मार्ग में बाधा बनने लगे तो हमें बदलाव का प्रयास करना चाहिए।

मोटे तौर पर कहें तो जब भी हमारे जीवन में कोई कठिन परिस्थिति आती है तो हमारे पास तीन विकल्प होते हैं: (क) हम स्वयं को बदलें (ख) हम परिस्थिति को बदलें (ग) हम स्वयं को परिस्थिति से अलग कर लें। महाभारत में हम देख सकते हैं कि पाण्डवों ने अपने जीवन में इन सभी विकल्पों को अलग-अलग समय पर क्रियान्वित किया। जब कौरवों ने भीम को विष देने का प्रयास किया, उन्हें जीवित जलाने का प्रयास किया, तो युधिष्ठिर ने अपने भाइयों से कहा कि यह हमारे पारिवार का अंदरूनी मसला है, हम इसे सार्वजनिक नहीं करेंगे और इसे सहन करेंगे। जब कौरवों ने द्रौपदी को सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र कर उसका अपमान का प्रयास किया और कोई भी पछतावा नहीं दिखाया, न ही सुलह की कोई इच्छा दिखाई, तो पाण्डवों ने स्थिति बदलने का निर्णय किया। इसी उद्देश्य के लिए उन्होंने युद्ध लड़ा। अंततः पांडवों ने राज्य प्राप्त किया, किन्तु जब उन्हें पता चला कि श्रीकृष्ण जगत से पलायन कर गए हैं तो उन्होंने स्वयं को परिस्थिति से अलग कर लिया। उन्होंने भी जगत को त्याग दिया। ये तीनों परिस्थितियाँ – स्वयं को बदलना, परिस्थिति को बदलना और परिस्थिति से अलग हो जाना – ये तीनों ही धर्म के अनुसार हो सकती हैं। हमें उस विकल्प का चुनाव करना है जिसमें श्रीकृष्ण की सबसे उत्तम सेवा की जा सके।

यदि हम किसी छोटी बात के कारण उद्विग्न हैं, तो हम इसे सहन कर सकते हैं। कुछ मामलों में जब यही छोटी बात गंभीर रूप ले ले, तो हमें इसे ठीक करने के लिए कदम उठाना चाहिए। हम ये कदम सेवा के भाव में उठा सकते हैं। हम स्वयं को परिस्थित से अलग करने का निर्णय लें तो हम ऐसा इस समझ के साथ करें कि हमारे पास जीवन में सेवा के लिए अन्य बेहतर विकल्प हैं, अतः हम उस परिस्थिति में लिप्त नहीं होते हैं और स्वयं को अलग कर लेते हैं।

सहिष्णुता मूल रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए है कि हमारा ध्यान श्रीकृष्ण की सेवा पर केंद्रित रहे। यदि सेवा करते हुए कुछ आकस्मिक समस्याऐं आती हैं, तो हमें उन्हें सहन करना चाहिए।

End of transcription.

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