Hindi-How to understand contradictory statements of acharyas about the fall of the jiva?
हमको अक्सर यह बताया जाता है कि हम आध्यात्मिक जगत में थे और वहाँ से यहाँ आए। लेकिन भक्तिविनोद ठाकुर अपने तत्त्व-विचार में कहते हैं कि हम कभी भी आध्यात्मिक जगत में थे ही नहीं और वहाँ से पतन जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं है। तो इसे कैसे समझा जाए?
असल में यह ऐसा विषय है जिसमें आचार्यों के वचनों में कुछ विरोधाभास जैसा प्रतीत होता है। इसलिए इसको समझने में सावधानी की आवश्यकता है।
अगर हम श्रील प्रभुपाद के वाक्यों को देखें तो उन्होंने भी इस विषय पर अलग-अलग स्थानों पर अलग तरह के कथन किए हैं। अधिकांश स्थानों पर वे कहते हैं कि हम आध्यात्मिक जगत से पतित होकर यहाँ आए हैं। लेकिन कुछ जगहों पर उन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से कहा है कि आध्यात्मिक जगत से कोई पतन नहीं होता। जैसे, चौथे स्कंध में जय-विजय की लीला के प्रसंग में प्रभुपाद कहते हैं कि वैकुण्ठ से पतन नहीं होता।
इसी बिंदु को लेकर 1980 के दशक में ISKCON में काफी विवाद हुआ। तब तक प्रभुपाद इस जगत से जा चुके थे और संस्थान पूरी तरह स्थिर भी नहीं हुई थी। इसलिए यदि कोई भक्त प्रभुपाद से अलग कुछ बोलता था तो उसके विरुद्ध बहुत कठोर कार्रवाई होती थी। इसी समय दो विद्वान भक्तों ने एक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि वैकुण्ठ से कभी भी कोई पतन नहीं होता। उसके उत्तर में GBC ने Our Original Position नामक एक पुस्तक प्रकाशित की।
लेकिन उसमें भी यह बात स्पष्ट नहीं हुई कि यदि हम यहाँ से वहाँ जाते हैं और फिर वहाँ से वापस पतन संभव नहीं है, तो हमारा वास्तविक आरंभ कहाँ से हुआ?
बल्देव विद्या भूषण अपनी टीकाओं में बताते हैं कि तीन बातें हैं –
- हमें स्वयं स्मरण रहेगा,
- अगर भोग करने की इच्छा भगवान से स्वतंत्र होकर उत्पन्न होगी,
- तभी वह स्मृति भगवान की कृपा से प्रकट होगी – जैसा गीता में कहा है मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
तो अगर हमें कोई विशेष स्मृति नहीं है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह बात असत्य है। क्योंकि भगवान की इच्छा से ही स्मृति, ज्ञान और विस्मरण प्रकट होते हैं।